*जानव मकर संक्रांति काबर मनाए जाथे।*

*जानव मकर संक्रांति काबर मनाए जाथे।*

हिन्दू संस्कृति बहुते पुराना संस्कृति ए ओम अपन जीवन मा प्रभाव डालने वाला ग्रह, नक्षत्र के अनुसार ही वार, तिथि त्यौहार बनाये गे हे । ए त्योहार मन मा एक हे मकर संक्रांति। ऐ दरी  15 जनवरी के मकर संक्रांति मनाए जाही ।
हिंदू धर्म हा महिना मन ला दू  भागों मा बाँटे हे. कृष्ण पक्ष अउ सुक्ल पक्ष । अइसने साल ला भी दू भाग मा बांटे गे हावय, पहला उत्तरायण अउ दूसरा हे दक्षिणायन ए दूनों ंमिलके ए बछर पूरा होथे।    
मकर संक्रांति के दिन ले सूरूज हा पृथ्वी के परिक्रमा करे के दिसा ला बदलत हुए थोकिन उत्तर के कोती ढलथे एखर सेती ए काल ला  उत्तरायण कहिथे।  
ठही दिन से अलग.अलग राज्य मन मा गंगा नदी के किनारे माघ मेला या गंगा स्नान के आयोजन करे जाथे । कुंभ के पहला स्नान के सुरुआत भी इही दिन से होथे।
सूर्य उपर आधारित हिंदू धर्म मा मकर संक्रांति के बहुत अधिक महत्व माने गे हे। वेद अउ पुराण मा भी ए दिन के विसेष उल्लेख मिलथे। होरी, देवारी, दुर्गोत्सव, सिवरात्रि अउ अन्य कई तिहार जेखर बर रंग-रंग के कथा बने-बने हे फेर मकर संक्रांति बर अइसन नई ऐ ए तिहार हा पूरा तरह से एक खगोलीय घटना मा आधारित हावय जेनमा  जड़ अउ चेतन के दसा अउ दिसा तय होथे।
सूर्य के धनु से मकर राशि मा प्रवेस ला उत्तरायण माने जाथे। ए रासि परिवर्तन के समय ला ही मकर संक्रांति कहिथे। इही हा एकमात्र तिहार हे जेनला जम्मो भारत मा मनाए जाथे, भले एख रनाम अलग.अलग प्रांत मा अलग-अलग  हो सकत हे अउ एला मनाए के तरीका मा भिन्नता हो सकत हे फेर ए तिहार सब्बो बर है बहुत महत्वपूर्ण।
अलग-अलग राज्य मा अलग-अलग नाम से मनाए जाथे मकर संक्रांति।
उत्तर प्रदेश - इहां मकर संक्रांति ला खिचड़ी तिहार केहे जाथे। एमा सूर्य की पूजा करे जाथे। चावल अउ दार के खिचड़ी खाए जाथे अउ दान करे जाथे। 
उत्तराखण्ड-
ए दिन ;उत्तरायणीद्ध ला बड़ ही हर्सोल्लास के साथ मनाए जाथे। कई जगह मा मेला के आयोजन करे जाथे जेनला कुमायूं मा उत्तरायणी मेला अउ गढवाल मा गिन्दी कौथिक कहिथे।ए दिन जलेबी खाए के भी प्रचलन हे।
गुजरात अउ राजस्थान - इहा एला उत्तरायण पर्व के रूप मा मनाए जाथे। पतंग उत्सव के आयोजन करे जाथे।
आंध्रप्रदेश - संक्रांति के नाम से तीन दिन के पर्व मनाए जाथे। 
तमिलनाडु - एला किसान मन के प्रमुख पर्व पोंगल के नाम से मनाए जाथे। ए दिन घी में दार.चाउर के खिचड़ी रान्धे अउ खिलाए जाथे। 
महाराष्ट्र - ए दिन लागन मन  गजक अउ तिल के लड्डू खाते हैं अउ एक दूसर ला भेंट देके सुभकामना देथे।
पश्चिम बंगाल - हुगली नदी मा गंगा सागर मेला के आयोजन करे जाथे।
असम रू ईहां भोगली बिहू के नाम से ए तिहार ला मनाए जाथे। 
पंजाब रू पंजाब मा इही तिहार ला  एक दिन पहली लोहड़ी पर्व के रूप में मनाए जाथे। ए दिन धूमधाम के साथ समारोहों के आयोजन करे जाथे। 
इही दिन से हमर धरती एक नवा बछर मा अउ सूरूज एक नवा गति मा प्रवेस करथे। वईसे वैज्ञानिक कहिथे कि 21 मार्च के धरती हा सूरूज के एक चक्कर पूरा कर लेथे। एला माने त इही दिन नवा साल मनाना चाही।अइसे भी माने जाथे कि  मकर संक्रांति से धरती मा अच्छा दिन के सुरूआत होथे वो एखर सेती कि सूरूज हा दछिन के जगह अब ले उत्तर कोती गमन करे बर धर लेथे। जब तक सूरूज हा पूरब से दछिन के तरफ गमन करथे तब तक ओखर किरण ला ठीक नई माने जाए, जबकि जव वो हा पूरूब से उत्तर के तरफ गमन गरथे तब ओखर किरन हा सेहत अउ सांति ला बढ़ाने वाला होथे।  
अइसे मान्यत ाहे कि मकर संक्रांति के दिन ही पवित्र गंगा नदी के धरती मा अवतरण होए रहिस हे। महाभारत मा पितामह भीष्म हा सूर्य के उत्तरायण होए के बाद ही स्वेच्छा से सरीर के परित्याग ला करे रहिन, काबर कि उत्तरायण मा देह छोड़ने वाला मन के आत्मा या तो कुछ काल बर देवलोक मा चले जथे  या पुनर्जन्म के चक्र से ओला  छुटकारा मिल जथे।
दक्षिणायन मा देह छोड़े से बहुत काल तक आत्मा ला अंधकार के सामना करे बर पड़ सकत हे । सब कुछ प्रकृति के नियम के तहत हे, एखरे सेती सब कुछ हा  प्रकृति से बंधे हावय। पौधा भी प्रकास मा अच्छा से खिलथे अउ अंधकार मा सिकुड़ जथे। एखरे सेती अइसे माने जथे कि  मृत्यु हो तो प्रकास मा हो ताकि साफ.साफ दिखाई देवए कि हमार गति अउ स्थिति का हे, काहम एमा कुछु  सुधार कर सकत हन।   
स्वयं भगवान श्रीकृष्ण हा भी उत्तरायण के महत्व ला बतावत हुए गीता में के हे कि उत्तरायण के छह मास के शुभ काल मा जब सूर्य देव उत्तरायण होथे अउ पृथ्वी प्रकासमय रहीथे त ए प्रकास मा सरीर के परित्याग करे से व्यक्ति के पुनर्जन्म नहीं होवय अउ अइसन लोगन मन ब्रह्म ला पा लेथे। एखर उल्टा सूर्य के दक्षिणायण होने मा जब पृथ्वी अंधकारमय होथे अउ इही अंधकार मा सरीर त्याग करे जथे तब ओ मनखे ला पुनः जन्म लेना पड़थे। श्लोक.24.25  
*क्या करे मकर संक्रांति मा*
      मकर संक्रांति या उत्तरायण दान.पुण्य के  पर्व होथे । ए दिन किए गे दान.पुण्य, जप.तप हा अनंतगुना फल देने वाला होथे। ए दिन गरीब मन ला अन्नदान, जैसे तिल अउ गुड़ के दान देना चाही। एमा तिल या तिल के लड्डू या तिल से बने खाद्य पदार्थों मन के दान करना चाही। ए दिन कई लोगन मन रुपया.पैसा भी दान करथे।
उत्तरायण के दिन भगवान सूर्यनारायण के ए नाम मन के जप हा विसेस हिकारी रहिथे। 
ॐ मित्राय नमः।ॐ रवये नमः । 
ॐ सूर्याय नमः।ॐ भानवे नमः।
ॐ खगाय नमः।ॐ पूष्णे नमः ।
ॐ हिरण्यगर्भाय नमः ।
ॐ मरीचये नमः । 
ॐ आदित्याय नमः ।
 ॐ सवित्रे नमः ।
ॐ अर्काय नमः ।  
ॐ भास्कराय  नमः । 
ॐ सवितृ सूर्यनारायणाय नमः।
????ॐ ह्रां ह्रीं सः सूर्याय नमरू।  ए मंत्र से सूर्यनारायण के वंदना करना, ओखर चिंतन करके प्रणाम कर लेना चाही अइसन करे से सूर्य देवता प्रसन्न होंथे अउ निरोगी रखत हुए जम्मो अनिस्ट से भी हमर रछा करथे।
यदि नदी के तीर तक  जाना संभव नही हे त अपने घर के नहानी मा पूर्वाभिमुख होके जल पात्र में तिल मिस्रित जल से स्नान करना चाही।  साथे साथ जम्मों पवित्र नदी अउ तीर्थ के स्मरण करते हुए ब्रम्हा, विष्णु, रूद्र अउ भगवान भास्कर के  ध्यान करते  हुए ए जनम से पाछू के जनम के ज्ञात अज्ञात मन, वचन, भाखा, चोला  आदि से उत्पन्न दोस मन के निवृत्ति बर छमा याचना करत हुए सत्य धर्म के खातिर निष्ठावान होके सकारात्मक कर्म करे के संकल्प लेना चाही । केहे जाथे कि जेन मन हा मकर संक्रांति के दिन स्नान नही करय वो हा 7 जनम  तक निर्धन अउ रोगी रहिथे।
तिल के महत्व -
विस्नु धर्मसूत्र मा उल्लेख है कि मकर संक्रांति के दिन तिल के 6 प्रकार से उपयोग करे मा जातक के जीवन में सुख अउ समृद्धि आथे ।
ए दिन किए जाने वाला विसेस कार्य- तिल के तेल से स्नान करना, तिल के उबटन लगाना । पितर मन ला तिलयुक्त तेल अर्पित करना। तिल के आहूति देना । तिल के दान करना । तिल के सेवन करना।
ब्रह्मचर्य बढ़ाने खातिर किए जाने वाला काम-
जेनला ब्रह्मचर्य रखना हो, संयमी जीवन जीना हो, वो मन ला उत्तरायण के दिन भगवान सूर्यनारायण के सुमिरन करना चाही एखर से बुद्धि मा बल बाढथे ।
ॐ सूर्याय नमः 
ॐ शंकराय नमः 
ॐ गं गणपतये नमः
ॐ हनुमते नमः 
ॐ भीष्माय नमः 
ॐ अर्यमायै नमः
ॐ ॐ