*ईसाई आदिवासी महासभा छतीसगढ़ ने किया डीलिस्टिंग का विरोध*

डीलिस्टिंग के दुष्परिणाम से अनभिज्ञ जनजाति सुरक्षा मंच के इस कदम से आदिवासी वर्ग में डर भय अनिश्चित भविष्य की चिंता और आपस में वैमनस्यता उत्पन्न हुई है ।

*ईसाई आदिवासी महासभा छतीसगढ़ ने किया डीलिस्टिंग का विरोध*
*ईसाई आदिवासी महासभा छतीसगढ़ ने किया डीलिस्टिंग का विरोध*

रायपुर 29 अप्रैल 2023.. 04 अप्रैल, 2023 एवं 16 अप्रैल 2023 को छत्तीसगढ़ रायपुर में आमसभा और रैली निकालकर यह मांग की गई है कि जो अनुसूचित जनजाति अपने परंपारिक संस्कृति रीति रिवाज ( रूढि प्रथा ) त्याग कर अन्य धर्म: ईसाई या इस्लाम धर्म मानता है तथा अनुसूचित जनजाति और अल्पसंख्यक का दोहरा लाभ ले रहा है एवं मूल आदिवासियों का एक छीन रहे उन्हे अनुसूचित जनजाति की सूची से डिलिस्ट कर आरक्षण का लाभ न दिया जाय । वास्तविकता को जाने बिना तथा डीलिस्टिंग के दुष्परिणाम से अनभिज्ञ जनजाति सुरक्षा मंच के इस कदम से आदिवासी वर्ग में डर भय अनिश्चित भविष्य की चिंता और आपस में वैमनस्यता उत्पन्न हुई है ।

तिगा ईसाई आदिवासी महासभा इकाई रायपुर छत्तीसगढ़ उनकी अनुचित मांग की निंदा और घोर विरोध करता है। जनजाति सुरक्षा मंच द्वारा डीलिस्टिंग हेतु लगाए गए आरोपों एवं कारणों का बिन्दुवार खंडन कर ईसाई आदिवासी महासभा छतीसगढ़ अपना पक्ष रखते हुए प्रेस वार्ता के माध्यम से जनजाति सुरक्षा मंच और शासन प्रशासन को वास्तविक वस्तुस्थिति से अवगत करा कर बताना चाहती है कि उनके द्वारा डीलिस्टिंग की मांग करना अनुचित और असंवैधानिक है।

डीलिस्टिंग हेतु जनजाति सुरक्षा मंच द्वारा आरोपित कारण एवं आधार :-

1. आरोप जो जनजाति परंपरा को नहीं मानते उनको आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए तथा उनको आदिवासी नहीं मानना चाहिए ।

खण्डन :- जनजाति सुरक्षा मंच द्वारा डीलिस्टिंग के लिए दिया गया युक्तियुक्त आधार आमक एवं निराधार है क्योंकि ईसाई धर्म को मानने वाले आदिवासियों ने अपनी संस्कृति व परंपराओं को कभी नहीं त्यागा है बल्कि अपनी संस्कृति और परंपराओं को सहेज कर रखा है। वे अपने जन्म से लेकर मृत्यु तक पारंपरिक त्योहार एवं मौसमी नाच गान शादी व्याह से संबन्धित रीति रिवाज और समय समय पर सामाजिक परिवेश में परिवर्तन का सतत पालन करते आ रहे हैं, जिसको आज भी आदिवासी निवासरत क्षेत्र में देखा जा सकता है भारत देश के विभिन्न राज्यों में निवासरत आदिवासियों ने विशेषकर उरांव जनजाति ने अपने कुलनाग / गोत्र ( एक्का, टोपी लकड़ा तिरंगा तिर्की, मिंज, बरवा, बड़ा फैरकेटटा कुजूर खलखो, किडो खेस्स पन्ना आदि 46 गोत्र ) जो कि सीधे प्रकृति से जुड़े है अपने नाम के साथ यथावत बरकरार रखा है और उनके नाम के साथ हमेशा जुड़ा हुआ है जो कि उनके आदिवासी होने की पहचान एवं प्रमाण है।

2. आरोप जिन नागरिको ने अपने मूल संस्कृति व मूल धर्म को छोड़ कर विदेशी धर्म (ईसाई व मुस्लिम) अपनाया है उन्हें आदिवासी की श्रेणी से बाहर किया जाए ।

खण्डन :- भारतीय संविधान में धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार अनुछेद 25 के अंतर्गत सभी व्यक्तियों को अन्तःकरण की और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान हक है और अनुछेद 15 में धर्म, मूलवंश जाति लिंग अथवा जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध है। भारत का कोई भी नागरिक अपने विश्वास / आस्था के अनुरूप किसी भी धर्म की मान सकता है हम आदिवासी अपने विश्वास / आस्था के अनुरूप ईसाई धर्म को मानते है । मात्र धर्म परिवर्तन से एक व्यक्ति अनुसूचित जनजाति की सदस्यता से वंचित नहीं रह जाता है। इसके लिए माननीय सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट द्वारा दी गई रुलिंग तथा शासकीय दस्तावेजों और विद्वान न्यायधीशों द्वारा दी गई टिप्पणी तथा निर्णय का अवलोकन कर सकते हैं जिसमें साफ लिखा हुआ है कि मात्र धर्म बदलने से कोई भी अनुसूचित जनजाति की सदस्यता नहीं खो देता है और अनुसूचित जनजाति को मिलने वाले संवैधानिक लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है क्योंकि धर्म बदलने के बाद भी उनकी परंपरा, रीति रिवाज, भाषा अक्षुण रही है

संदर्भ प्रकरण :-

1. पटना हाई कोर्ट- कार्तिक उरांव बनाम डेविड मुंजनी एआईआर 1964 पीएटी 201

दिनाँक 14.11.1963) 2. सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया केरल सरकार एवं अन्य बनाम चन्द्रमोहनन क्रमांक 429 वर्ष

2004 ए आईआर एस सी डब्ल्यू 1064 (3)

3. छ.ग. हाई कोर्ट बिलासपुर समीरा पैकरा बनाम अमित अजित जोगी अमित ऐश्वर्या जोगी

दिनांक 30.01.2019 ई पी न 3 ऑफ 2014

अतः जनजाति सुरक्षा मंच द्वारा इस संबंध में लगाया गया आरोप असंवैधानिक एवं 3. आरोप :- ईसाई आदिवासी मूल जनजातियों के हिस्से की सुविधाओं को छीन रहे हैं।

खान:- जनजाति सुरक्षा मचदद्वारा लगाया गया यह आरोप असत्य एवं ग्राम है क्योंकि भारतीय संविधान के अनुसार भारत में निवासरत सभी जनजातियों के लिए सभी क्षेत्री (शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार न्याय, राजनीति आदि) में भेदभाव रहित समानता की व्यवस्था की गयी है। प्रतियोगी को उसकी गोग्यता के आधार पर आरक्षण का लाभ दिया जाता है मात्र अनुसूचित जनजाति का सदस्य होना ही आरक्षण के लाभ के लिए पर्याप्त नहीं है। यदि ईसाई धर्म मानने वाले अनुसूचित जनजातियों के द्वारा मूल जनजातियों के हिस्से को छीना जाता तो आज की तारीख में केंद्र व राज्य शासन के प्रत्येक विभाग के पदों में जनजातियों के लिए आरक्षित पद रिक्त नहीं पड़े होते ।

उपरोक्त तथ्यों के आधार पर यह स्पष्ट है कि जनजाति सुरक्षा मंच द्वारा डीलिस्टिंग की मांग कर आदिवासियों के बीच फूट डालने और आपसी द्वेष फैलाने का काम किया जा रहा है। कुछ राजनैतिक दलों द्वारा राजनीतिक लाभ लेने के मकसद से ऐसा कदम उठाया जा रहा है, वे यह नहीं चाहते कि आदिवासी लोग शिक्षित बने तरक्की करें संगठित रहे और अपने हक अधिकार के लिए संघर्ष करे। यदि जनजाति सुरक्षा मंच को आदिवासियों की इतनी ही चिंता रहती तो वे उनके आरक्षण के लिए सड़क कि लड़ाई क्यों नहीं लड़ते, अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभा पेसा कानून वनाधिकार कानून आदि के शशक्तिकरण के लिए रैली जुलूस सभा क्यों नहीं करते और धरना प्रदर्शन क्यों नहीं करते 7

अवगत हो कि छत्तीसगढ़ एक शांति प्रिय राज्य है जहां के लोग सीधे और सरल स्वभाव के हैं तथा आपस में मिल जुल कर भाईचारे के साथ रहना पसंद करते हैं। जनजाति सुरक्षा मंच द्वारा समय समय पर डीलिस्टिंग की मांग से आदिवासियों के बीच आपसी विद्वेष की भावना फैल रही है। छत्तीसगढ़ राज्य के अलावा देश के अन्य राज्यों में भी डीलिस्टिंग की मांग की जा रही है जो कि असंवैधानिक एवं निराधार है और उनका यह कदम भविष्य में जनजाति समाज के लिए अत्यंत घातक सिद्ध होगा। अतः ईसाई आदिवासी महासभा जनजाति सुरक्षा मंच द्वारा की गई डीलिस्टिंग की मांग का पुरजोर विरोध करता है ।